Bolna hi hai book summary
Table of Contents
बोलना
विद्यालय या tuition में पढ़ते वक़्त जब बच्चो को कोई सवाल समझ नहीं आता तो कई बच्चे अपने हाथ उठा के अध्यापक से सवाल का जवाब नहीं पूछते है, उनको ये डर रहता है, की बाकी बच्चे उसके बारे में क्या सोचेंगे या उन पर हसेंगे की उसको इतना आसान सवाल भी समझ नहीं आया।
मम्मी बाहर सड़क टूटी हुई है लगता है मुझे complaint करनी चाहिए, नहीं बेटा तुझे क्या लेना देना हम तो किराये के मकान में रहते है, तुझे क्या जरूरत है बोलने की?
बचपन से ही हमे ये सिखाया जाता है की बोलना हमारा काम नहीं, किसी से सवाल पूछना हमारा काम नहीं, दूसरे लोग पूछ लेंगे या सवाल कर लेंगे, लेकिन ये दूसरे लोग कौन है?
रवीश कुमार हमे बताते है डर बाहर से आता है, और साहस अंदर से। और जो बोलता नहीं है वो अपने डर में कैद रहता है कभी मुक्त नहीं होता है। अगर हम सही वक्त पर नहीं बोलते है तो चूक जाते है और बाद में पछताते है की काश उस जगह वो बात बोल दी होती तो मन हल्का हो जाता।
आज हमारे phone और टीवी screen हमे नियंत्रित करने के नय औज़ार है। सैकड़ों channel है, सभी से एक ही घोषणा होती है। एक ही मुद्दे पर चर्चा होती है, news के नाम पर लोगो को robot बनाया जा रहा है। और ऐसे न्यूज़ channels को रवीश गोदी मीडिया कहते है
वो कहते है की “में अपने तथ्यों को ठीक से परखता हूँ, कलम सीधी रखता हूँ और जुबान साफ। इसके बाद बोलने का साहस आ जाता है।
ये किताब हमे सिखाती है की जहाँ हमे बोलना चाहिए वंहा हमे अपने आप को रोकना नहीं चाहिए, बल्कि अपने नागरिकता का अधिकार हर हाल में निभाना चाहिए और विरोध करना चाहिए, विरोध करना कोई अपराध नहीं है जिससे हम डरे।
social media पर हम कई बार किसी बड़े नेता या celebrity के खिलाफ बोलने से डरते है की हमे वंहा troll किया जायेगा और हमारा मज़ाक उड़ाया जायेगा, क्योंकि सारे लोग ऐसा कर रहे है इसीलिए हमे भी ऐसा करना चाहिए ऐसी सोच इंसान के ऊपर एक pressure बना देती है।
हमे लगता है की जो लोग साहस से बोलते और सत्ता से सवाल पूछते है उनमे कोई अलग प्रकार की शक्ति है , लेकिन दरअसल हम ही इतने ज्यादा डरे हुए हैं की हमे वो साहसी लगते है। इसलिए बोलने से डरे ना, बल्कि बोले और जहाँ सवाल पूछना है वंहा सवाल पूछे, यह किताब हमे यही सिखाती है
Best Motivational Books In Hindi
डर का रोज़गार
एक पत्रकार जिनका नाम गौरी लंकेश था , उनकी हत्या कर दी जाती है क्योंकि वो सरकार का विरोध जाहिर कर रही थी अपने लेखन के जरिये, कई भक्त उनको गलिय भी दे रहे थे |
रवीश कुमार बताते है की ये हम कैसे समाज की तरफ जा रहे है जहाँ लोगो को सरकार के विरोध में बोलने से रोका जाता है और जो उनके विरोध में बोलता है उनको धमकाया जाता है, उनको नौकरियों से हटाने की धमकी मिलती है, जान से मर देने की धमकी मिलती है, उनको देश विरोधी बताया जाता है |
social media, fake news और गोदी media जे ज़रिये लोगो की मानसिक हत्या भी की जा रही है, उनके मन में एक विशेष धर्म के प्रति नफरत भरी जा रही है, news channels पर पूरा दिन बस हिन्दू मुसलमान चलता रहता है
रोज़ शाम को उसका एक ही थीम होता है, कभी खिचड़ी- बिरयानी, कभी ताजमहल-मंदिर, कभी नेहरु बनाम पटेल तो बोस बनाम नेहरु, और भी भाँती भाँती के महापुरुष इस लिस्ट में आते जाते रहते है
इसका हम एक उदाहरण इस corona virus के महामारी के दौरान में भी देख सकते है जहाँ फिर virus को किसी धर्म का बताया जा रहा है
कोई डर की वजह से सत्ता से सवाल नहीं करता है, रवीश जी बताते है की डर उनको भी लगता है लेकिन वो अपने डर से हर दिन लड़ते है और उस डर पर अपनी बात बोल कर विजय पाते है
लगातार आम लोगो कीआंकाक्षाओं की हत्या हो रही है, उनको डराया जा रहा है, उनके बीच भय का एक माहौल बनाया जा रहा है
इस पैटर्न को आप समझिये |
Bolna hi hai book summary
जनता होने का अधिकार
रविश हमे बताते है की अगर हम सवाल पूछना छोड़ देते है तो हम अपने जनता होने के अधिकार को भी छोड़ देते है, फिर हम एक चलता फिरता रोबोट बन जाते है जिसमे कुछ चुनिन्दा बाते ही फीड कर दी गयी है और अब हम अपना दिमाग इस्तेमाल करना भूल चुके है
अगर आप फेसबुक पर किसी के विरोध में लिखने में संकोच करते है या किसी खास वक्त से घर से बाहर निकलने में हिचकिचाते है तो आप डरते है
जी एंकर को दिन में दो अखबार पढने का वक्त नहीं होता , वह रोज़ रात को इतिहासकार बनकर आपकी बुद्धि को भ्रष्ट कर रहा होता है
जब कोई मतदाता अपना वजूद किसी नेता में विसर्जित कर देता है, तब वह जनता नहीं रह जाता, तब वह मतदाता भी नहीं रह जाता है, वह आंधी के पीछे उड़ने वाली मात्र धुल बन जाता है
अपने जनता होने के अधिकार को समझिये और जो संविधान हमे अधिकार और ताकद देता है उसका पूर्ण इस्तेमाल कीजिये
डर को मिटाने के लिए फेसबुक पर रोज़ दस पोस्ट लिखिए, की हां में विरोधी हूँ और इस बात का विरोध करता हूँ या करती हूँ, विरोधी होना कोई अपराधी होना नहीं है
बाबाओं के बाज़ार
- कृपा बाबा – ये बहुत ज्यादा पहुंचे हुए बाबा है, बस बैठे बैठे solution दे देते है, गोल गप्पे के साथ लाल चटनी खाना, ये करना वो करना कृपा वंही अटकी हए है
- डांस बाबा – कुछ बाबा लोगो का मनोरंजन डांस से करते है
- अजीब बाबा – कुछ बाबा लोगो को कुछ अजीबो गरीब formulas बताते है, Einstein की थ्योरी की उल्टा कर देते है, e = mc isquare नहीं होता है लेकिन e= mcccccccccccccc isquare होता है
- emotional माता – बाबाओं की लिस्ट में सिर्फ पुरुष ही नहीं नहीं बल्कि माता भी है जो बहुत जादा भावनात्मक है, भक्तों के साथ डांस करती है, बात बात पर रो जाती है
- holy बाबा – बाबाओं के बाज़ार में कुछ ऐसे बाबा भी है जो holy रुमाल, holy पानी, holy oil और भी पता नहीं क्या क्या holy बेचते फिरते है और लोगो को पागल बनाते है
यदि ऐसा कुछ भी दिखता है तो उसके खिलाफ भी हमे बोलना है और अपने नागरिकता के अधिकार को बचा के रखना है
अगर आप ऐसे बाबाओं में भी अपने आप में विसर्जित कर देते है और अपना स्वाम का दिमाग लगाना छोड़ देते है, logic से आपको तनिक भी फर्क नहीं पड़ता है तो आप रोबोट बन चुके है |
हम सबके जीवन में प्रेम
कितने माँ-बाप अपने बच्चों से पूछते होंगे की तुम्हरे जीवन में कोई है जिसे तुम पसंद या प्रेम करते हो? बहुत कम |
फिल्मे हमारी दीवानगी की शिल्पकार है | किसी को पहली बार देखने के फन से लेकर, उससे टकरा जाने का हुनर हमे फिल्मों ने दिय है | इस प्रक्रिया में फिल्मों ने हमे लफंगा भी बनाया है और अच्छा प्रेमी भी | लेकिन लफंगा ज्यादा बनाया है और अच्छा प्रेमी कम |
कभी गीतकार ने अपनी कलम से ऐसे गीत नहीं लिखे, जिनमे कोई लड़का किसी लड़की की सामाजिक पहचान से भीड़ जाता हो | सारे हीरो अपर कास्ट वाले हुए | कपूर,माथुर,और सक्सेना से आगे नहीं जा सके | heroin लिली,और सिली होती रही | ऐसा लगा मानो heroin सीधे असमान से उतरती है जेसे की किसी शायर की गजल,ड्रीम गर्ल ,किसी झील का कमल, आदि |
किसी दलित लड़की के लिए कोई हीरो अपने कपूर खानदान को लात नहीं मरता ना ही कोई हिन्दू लड़की किसी मुसलामन लड़के का हाथ पकड़कर कहती है की में तुमसे प्यार करती हूँ, हिन्दू मुस्लिम की एकता का प्रवचन देने वाली हिंदी फिल्मे बहुत कम सही ऐसा दिखाती है |
हमारे शहरों में प्रेम की कोई जगह नहीं है | पार्क का मतलब हमने इतना ही जाना है की गेंदे और बोगनवेलिया के फुल खिलेंगे, कुछ retired लोग दौड़ते मिलंगे | दो-चार प्रेमी होंगे, जिन्हें लोग घूर रहे होंगे |
फरवरी में अंकित और उसकी प्रेमिका दोनों ने घर से भाग जाने का फेसला किया, अंकित एक हिन्दू था और उसकी प्रेमिका एक मुसलमान , दोनों घर से भाग निकले लेकिन रास्ते में उसकी कार प्रेमिका की माँ की स्कूटी से टकरा गयी,अंकित घिर गया, प्रेमिका के परिवार वाले ने उसका गला काट दिया |
इतनी नफरत हमारे दिमाग में भर दी गयी है की हम किसी की जान लेने में बिलकुल भी नहीं कतराते है | महज़ब के नाम पे लोगो को मार देते है, जिनसे खुद महज़ब बनता है |
Bolna hi hai book summary
नागरिक पत्रकारिता की ताकत
1 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी जी ने कहा था – “फुजूल की बेएतबारी जहालत और बुजदिली की निशानी है “
अगर आप ये सोच रहे है की ये देश बदलने के ठेका आपने नहीं ले रखा है, तो आप अपनी ही बात कर रहे है और कह रहे है की आपने अपने आप को बदलने का ठेका नहीं ले रखा है, क्योंकि आप ही तो देश है
और अगर आप ये सोच रहे है की आप में इतनी क्षमता नहीं है की आप बदलाव ला सकत है तो आप बाहरी क्षमता पर निर्भर है, अगर आप गांधीजी के शरीर को देखेंगे तो क्या कगेंगे , एक अधनंगा फ़क़ीर क्या देश को बदलेगा ये तो किसी को एक चांटा भी नहीं मार सकता है
लेकिन देखिये उस अधनंगे फ़क़ीर ने ही हमे आज़ादी दिलाने में कितना सहयोग दिया है, अपनी क्षमता को पहचानिए और उस पर काम कीजिये आप एक बड़ा बदलाव ला सकते है
उन सारे news channels से, fake news से दूर रहिये जो आपके दिमाग में कचरा और नफरत भर रहे है
गाँधी जी ने कहा था – “आप इन निक्कमे अख़बारों को फेंक दे, कुछ ख़बर सुनानी हो तो एक-दुसरे से पूछ लें | अगर पढना ही चाहें तो सोच-समझकर अख़बार चुन लें, जो हिंदुस्तान वासियों की सेवा के लिए चलाया जा रहे है हो, जो हिन्दू और मुसलमान को मिलकर रहना सिखाते हो |
किताब को खरीदने के लिए यंहा क्लिक करें
आशा करता हूँ आपको ये Bolna hi hai book summary पसंद आई होगी, अपने दोस्तों की साथ जरुर शेयर करें |
धन्यवाद !